Latest news
23 October 2024

राष्ट्रीय। प्रधानमंत्री ने लाल किले से अपने संबोधन के माध्यम से देश की भावी राजनीति के एजेंडे को स्थापित करने का काम किया। एक तो उन्होंने भ्रष्टाचार से दृढ़ता से लड़ने का संकल्प लिया और दूसरे यह साफ किया कि देश को आए दिन होने वाले चुनावों से मुक्त करने की जरूरत है। पीएम अपने इस तीसरे कार्यकाल में इस एजेंडे को लागू करने के प्रति गंभीर हैं.

स्वतंत्रता दिवस पर लगातार 11वीं बार लाल किले से देश को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जिस तरह विस्तार से अपने अब तक के शासनकाल की उपलब्धियों को रेखांकित करने के साथ विकसित भारत के लक्ष्य को सामने रखा, उससे यही स्पष्ट हुआ कि वह अपने उस एजेंडे को पूरा करने के लिए प्रतिबद्ध हैं, जिसका उल्लेख पहले भी कई बार कर चुके हैं.

लाल किले की प्राचीर से प्रधानमंत्री के अब तक के सबसे लंबे संबोधन से यह भी साफ होता है कि अपने तीसरे कार्यकाल में गठबंधन सरकार का नेतृत्व करने के बाद भी वह अपने लक्ष्य से डिगे नहीं हैं। इसका पता इससे चलता है कि उन्होंने करीब-करीब हर उस विषय पर अपने विचार व्यक्त किए, जो देश के समक्ष उपस्थित हैं.

उन्होंने आंतरिक और बाहरी चुनौतियों की चर्चा करते समय बांग्लादेश के हालात का भी जिक्र किया और वहां के हिंदुओं एवं अल्पसंख्यकों को लेकर भी अपनी चिंता व्यक्त की। ऐसा करना समय की मांग थी। यह भी उल्लेखनीय है कि उन्होंने एक ओर जहां जातिवाद और परिवारवाद की राजनीति पर प्रहार किया, वहीं दूसरी ओर कोलकाता की दिल दहलाने वाली घटना को ध्यान में रखते हुए नारी सुरक्षा की आवश्यकता पर भी बल दिया.

उन्होंने यह कहकर देश की राजनीति में व्यापक परिवर्तन लाने की भी पहल की कि आने वाले समय में एक लाख ऐसे युवाओं को अपनी पसंद के राजनीतिक दलों में सक्रिय होना चाहिए, जिनके परिवार के लोग पहले कभी राजनीति में न रहे हों। पता नहीं ऐसा कब और कैसे होगा, लेकिन इससे इन्कार नहीं कि भारतीय राजनीति को नए विचारों और नई ऊर्जा से लैस युवा नेताओं की आवश्यकता है.

प्रधानमंत्री ने लाल किले से अपने संबोधन के माध्यम से देश की भावी राजनीति के एजेंडे को स्थापित करने का काम किया। एक तो उन्होंने भ्रष्टाचार से दृढ़ता से लड़ने का संकल्प लिया और दूसरे यह साफ किया कि देश को आए दिन होने वाले चुनावों से मुक्त करने की जरूरत है। उन्होंने जिस तरह एक साथ चुनावों की जरूरत जताई, उससे यही लगता है कि वह अपने इस तीसरे कार्यकाल में इस एजेंडे को लागू करने के प्रति गंभीर हैं.

यह स्वागतयोग्य है कि उन्होंने ऐसी ही गंभीरता समान नागरिक संहिता को लेकर भी दिखाई। उन्होंने जिस प्रकार वर्तमान पर्सनल कानूनों को सांप्रदायिक बताते हुए पंथनिरपेक्ष नागरिक संहिता की जरूरत जताई, उससे इसमें संदेह नहीं रह जाता कि उनकी सरकार इस दिशा में आगे बढ़ने का मन बना चुकी है। यह सही भी है.

देश में एक ऐसी समान नागरिक संहिता लागू होनी चाहिए, जिससे हर जाति, पंथ, क्षेत्र के लोगों में यह भाव व्याप्त हो कि वे सब एक हैं। यह भी अच्छा हुआ कि उन्होंने यह महसूस किया कि देश की जनता शासन में सुधार के साथ त्वरित न्याय प्रणाली चाह रही है। इस अभीष्ट की पूर्ति होनी ही चाहिए।


 

About The Author

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *